Tuesday, July 19, 2011

संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन चाहती है

संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन चाहती है
मनमोहन सिंह सरकार में जो नए मंत्री आए हैं, उन्हें तो अभी अपने को सिद्ध करना है, लेकिन यह सिद्ध हो चुका है कि जो सात मंत्री हटाए गए, वे मंत्रिमंडल में स्थान पाने योग्य नहीं थे। जो मंत्री अब आए हैं, उनमें कोई ऐसा नहीं हो, यह प्रभु से प्रार्थना करने की बात होती है, चूंकि जिस व्यवस्था में से नए मंत्री आए हैं, उसी से वे भी आए थे, जो अब हटाए गए हैं। अतएव, मुख्य विषय व्यवस्था का हो जाता है। इसके पहले यह स्पष्ट कर लें कि जो परिवर्तन हुए हैं, वे नगण्य नहीं हैं। 78 में से 30 मंत्री प्रभावित हुए हैं। इनमें मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, राहुल गांधी की चली, और जो सर्वश्रेष्ठ मानवीय सामग्र्री उपलब्ध हो सकती थी, उससे राष्ट्र को वंचित रखा गया है। बहुत ही भौंडा उदाहरण है, लगता है- एक रोटी है, उसे नोच-नोच कर जिसकी चली, उसने उतनी झपट ली है। देश का ध्यान, जो सर्वोपरि होना चाहिए था, उतना नहीं रखा गया है। यह इस बार भर की समस्या नहीं है। जो निर्वाचित होकर मंत्री और प्रधानमंत्री पिछले छ: दशकों से बने, उन्हीं को तो दोषी माना जाएगा इस दुर्दशा का, जिसका सामना इस समय देश को करना पड़ रहा है। भारत की परिस्थिति हजार साल के आक्रमणों और आधिपत्यों के कारण ऐसी हो गयी थी कि श्रेष्ठतम प्रतिभा और चरित्र की शासन में आवश्यकता थी। इसे पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने समझा था, और स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में भारत राष्ट्र की उत्कृष्ट प्रतिभा का प्रतिनिधित्व हुआ था, जिनमें कई कांग्र्रेस के बाहर के थे। यह उदारता नहीं, इसकी स्वीकृति थी कि भारत की समस्याएं विकट हैं, भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा की इसके लिए जरूरत है। यह क्रम धीरे-धीरे टूटता गया, और इस समय इस पर आ गया है कि जिस सांसद को पूरे एक कार्यकाल का भी अनुभव नहीं है, उसे मंत्रिमंडल में ले लिया जाता है।
मंत्री और मंत्रिमंडल कैसा हो, उसमें नियुक्तयां कैसे करें, कौन उन पर निरीक्षण रखे, इसका संघर्ष स्वतंत्र भारत की सरकार बनते ही प्रारंभ हो गया था। यह खुलकर उस कांग्र्रेस अधिवेशन में सामने आया, जो स्वतंत्रता के बाद पहली बार हुआ था, जयपुर में। उसमें विषय निर्वाचनी समिति ने एक प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था, जिससे निरीक्षण और नियंत्रण अंतत: कांग्र्रेस के हाथ में रहने को था। विषय निर्वाचनी समिति वही होती है, जो महासमिति होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि यही कांग्र्रेस का अधिकृत मंतव्य था। जब यह प्रस्ताव स्वीकृत हुआ, जवाहर लाल जी उपस्थित नहीं थे, वे आए, उन्हें जब स्वीकृत प्रस्ताव के संबंध में बताया गया, तो वे बहुत खफा हुए- ‘यह हो कैसे सकता है!’ ...और विषय निर्वाचनी समिति का अधिवेशन फिर से बुलाया गया, और स्वीकृत प्रस्ताव को पलट दिया गया। जवाहर लाल जी ऐसे ही चमत्कारी व्यक्ति थे। परंतु, वे भी व्यक्ति थे, आदमी थे, सीमाएं इसकी होती हैं। मंत्रिमंडल में ऐसे लोग आते गए, जो भारत का भार उठाने में समर्थ नहीं थे। कृष्णा मेनन को जिस तरह चीनी हमले के बाद जाना पड़ा, उससे सबको मालूम हो गया कि क्षमताहीन और विवादास्पद विश्वासविहीन व्यक्ति को मंत्री नहीं रखा जा सकता। कृष्णा मेनन जैसे व्यक्तित्व के साथ वे हैं, जिन्हें इस बार मंत्रिमंडल से हटाया गया है। कृष्णा मेनन में क्षमता, योग्यता, प्रतिभा और निष्ठा की कमी नहीं थी, सब तरह से वे योग्य थे, परंतु सबके साथ मिलकर चलने के वे आदी नहीं थे, अहमन्यता उनमें अधिक थी और वे दूसरों के अनुभव, ज्ञान, परामर्श का लाभ उठाने में असमर्थ रहते थे। जहाँ-जहाँ निर्वाचनीय व्यवस्था है, वहाँ-वहाँ यह सिद्ध हो रहा है कि निर्वाचित सदन को साथ और विश्वास में लेकर जो चल सकता है, वही शासन में सफल हो सकता है। इसमें व्यक्तिगत गुण महत्व रखते हैं, परंतु व्यक्ति का महत्व उससे भी अधिक हो जाता है। स्वयं मनमोहन सिंह इस समय इस वर्ग में आ गए हैं : उनसे अधिक बौद्धिक प्रतिष्ठा तथा व्यक्तिगत चरित्र का व्यक्ति क्या प्रधानमंत्री पद के लिए मिलेगा! इसके साथ यह है कि वे आर्थिक विशेषज्ञ हैं, और आर्थिक समस्याएं ही इस समय विकट हैं। उनके समय में यह आर्थिक आश्चर्य हुआ है कि अठन्नी से नीचे के सिक्के अस्वीकार्य हो गये हैं। यह धनाढ्यता का नहीं, निर्दयता का द्योतक है। भारत में एक तिहाई ऐसे हैं, जो दो वक्त का पूरा भोजन नहीं पाते : चवन्नी उनकी प्रतिनिधि थी। उसके लिए स्थान ही नहीं बचा है। इसका अर्थ यह नहीं होता कि उनकी ओर इस समय के शासन का ध्यान नहीं है। पहले रोजगार गारंटी और अब सस्ती दर पर अनाज ऐसे निर्णय हैं, जो देश का कायाकल्प कर देंगे। परंतु, इससे नींव पक्की नहीं होती। क्रय-शक्ति बढ़नी चाहिए। इसमें कमी आ रही है, आत्महत्याएं हो रही हैं। इसे भली प्रकार समझा जाना चाहिए कि दूसरों की दया पर निर्भरता मनुष्य स्वभाव के प्रतिकूल होती है, और भारतीय संस्कृति तो इसके सर्वथा प्रतिकूल है। हमारे उपनिषदों में आया है- ‘याचना मत कर’। अब जो निर्धन हैं, उनकी समस्त सामाजिक व्यवस्था इस पर चलने पर निर्भर की जा रही है।
राजनीतिक क्षेत्र में भी यही हो रहा है। याचना को परिष्कृत करके कामना कर लें, उसकी धुरि पर समस्त व्यवस्था चल रही है। राजनीति में कौन आना चाहिए, यह व्यक्तिगत संबंध, महत्वाकांक्षा तथा व्यक्तिगत चातुर्य पर निर्भर कर लिया गया है। नीति कोई हो, चाहे राजनीति, चाहे शासन-नीति, पहले उसे जनता की सेवा की दृष्टि से परखना होगा। समय आ गया है, जब हमें समस्त व्यवस्था पर विचार और निर्णय करने होंगे। जो व्यवस्था स्वतंत्रता के साठ साल चली, वह नाकाफी रही है। गलत रही है,- यह कहना ही ज्यादा सही होगा। दिक्कत और दोष यह है कि इस व्यापक दृष्टि से इस समय विचार नहीं हो रहा है। क्रमश: भारतीय लोकतंत्र को पार्टीतंत्र बना लिया गया है, और पार्टी के भीतर एकतंत्र। इससे मुक्ति आसान नहीं है, चूंकि परस्पर स्वार्थ ने इसे मजबूत कर रखा है। फिर भी, भारत का सामान्य जन बेसमझ नहीं है, वह बेअसर भी नहीं है। इसके हाथ में एक अधिकार है- मतदान। उसका उपयोग करके वह क्रांतियां कर रहा है। परंतु, इसके आगे उसके कुछ अधिकार बनें, यह जरूरी हो गया है, जैसे- निर्वाचित सदस्यों की वापसी का अधिकार। जो व्यवस्था है, उसने स्थिति को स्वार्थ से ऐसा जकड़ लिया है कि निर्वाचन सुधार ही मूर्तरूप नहीं ले पा रहे। अब मामला आमूलचूल परिवर्तन का हो गया है। यह कौन करे, कैसे करे,- यह प्रश्न है। प्रश्न है, तो उत्तर है, अथवा उसे लाना होगा। आरंभ दो तरफ से करना होगा। पहले यह कि जो संसदीय व्यवस्था है, उसके दोष तथा दुर्बलताएं दूर की जाएं। (2) जो राजनीतिक दल इसमें भाग लेना चाहें, उनमें लोकतंत्र पुन: स्थापित किया जाए। जब सहकारी समितियों के लिए समान नियम बन सकते हैं, तो क्यों नहीं सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए समान नियम बन सकते? नियम ऐसे बनें कि बिना मौलिक लोकतंत्र के कोई राजनीतिक दल चल ही नहीं सके। हर राजनीतिक दल के आय-व्यय की जांच हो।
इससे भी आगे की बात है। शासन को राजनीति और पार्टीतंत्र से मुक्त किया जाए। राजनीति और पार्टीतंत्र अपनी सीमा में रहें- उन्हें जनता के सामने जाने का पूरा अधिकार हो, परंतु शासन में उनकी पहुँच तनिक भी नहीं हो। जो निर्वाचित हों, उन सबका शासन में प्रतिनिधित्व हो। निर्वाचित सब शासन संचालन के लिए होते हैं, पक्ष-प्रतिपक्ष का प्रश्न ही कहाँ रहता है! सदा देश में राष्ट्रीय सरकार रहे। इस समय की व्यवस्था में निर्वाचित सदन पार्टीबंदी से अवरुद्ध हैं : निर्वाचित होने के उपरांत किसी पार्टी का प्रभाव नहीं रहना चाहिए। सब मिलकर देश-उद्धार और देश-उत्थान की सोचें, और इसी दृष्टि से सारे काम करें। हमें अन्य देशों की ओर देखना बंद करना चाहिए, भारत को भारत के लिए उपयोगी व्यवस्था देनी चाहिए।

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Saturday, March 5, 2011

गाँधी जी ने ये बहुत स्पस्ट कह दिया था कि कोंग्रेस को खत्म कर दो ......... अगर इस कोंग्रेस को खत्म नहीं किया तो ये कोंग्रेस देश को वैसे ही लूटेगी जैसे ये अंग्रेज लूटते रहे है ..............कांग्रेस पार्टी को एक अंग्रेज व्यक्ति ने बनाया था | ए ओ ह्यूम उसका नाम था | कोंग्रेस की जब स्थापना हुई सन 1885 में गोकुलदास तेजपाल भवन में तो बाकायदा कोंग्रेस का प्रेम्बुल (प्रस्तावना) लिखा गया था वो क्या था ? प्रस्तावना में लिखा गया था कि कोंग्रेस पार्टी एक मनोरंजन क्लब के रूप में स्थापित हुई थी इस देश में | मौज मस्ती का क्लब था | और अंग्रेज क्या कहा करते थे कि - "इस कांग्रेस पार्टी में हम ऐसे पढ़े लिखे हिन्दुस्तानियों को हम जमा कर देंगे जो हिन्दुस्तानियों के मन में जो थोडा बलबला है और वो बलबला इस पार्टी में निकल आएगा तो फूट कर बाहर निकल जायेगा | और कोंग्रेस को अंग्रेज कहा करते थे कि ये सेफ्टी वाल्व है | फ्यूज की तरह से उड़ जायेगा | इसलिए कोंग्रेस की नीव पड़ी | ऐसे नीव पड़ी है इस पार्टी की | और दुर्दिन तो इस पार्टी को देखने ही थे | अगर महात्मा गाँधी न आये होते दक्षिण अफ्रीका से तो कोंग्रेस पार्टी को पूछने वाला कोई नहीं था इस देश में | गाँधी जी ने आके इसमें प्राण फूंके थे और गाँधी जी ने आके इसे जन आन्दोलन का रूप दिया था | बाद में गाँधी जी खुद इतने दुखी हुवे कि उन्होंने आजीवन कोंग्रेस को इस्तीफ़ा दे दिया | और बाद में गाँधी जी कांग्रेस पार्टी में मेम्बर तक नहीं रहे | और अंत में जीवन के आखिरी दोनों में गाँधी जी ने ये बहुत स्पस्ट कह दिया था कि कोंग्रेस को खत्म कर दो | क्यों ? आखिर गाँधी जी ने इतनी कडवी बात क्यों कही ? गाँधी जी कहते थे कि अगर इस कोंग्रेस को खत्म नहीं किया तो ये कोंग्रेस देश को वैसे ही लूटेगी जैसे ये अंग्रेज लूटते रहे है | लेकिन इन कोंग्रेसियों ने कोंग्रेस तो खत्म नहीं की, गाँधी को खत्म करवा दिया | क्योंकि गाँधी उनके रास्ते की रुकावट बनने लगे थे | और बाद में जब कोंग्रेस खत्म नहीं हुई तो आज आप उसका हस्र देख रहे हो|हिन्दुस्तान में घोटाले दर घोटाले ! इस पार्टी ने रिकोर्ड कायम किया है | और गाँधी जी यही कहा करते थे कि अगर ये कोंग्रेस खत्म नहीं हुई तो देश को ऐसे लूटेगी जैसे अंग्रेज लूटा करते थे | और आज गाँधी जी की वही बात सत्य साबित हो रही है इस देश में | और ऐसे धोखाधड़ी से ऐसे चार सो बीसी के काम से पंडित नेहरु इस देश के प्रधानमन्त्री बने थे | और ऐसी धोखाधड़ी से इस देश की आजादी आई हो तो वो आजादी आजादी है कहाँ ? और इसीलिए गाँधी जी 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में नहीं आये थे | वो नुव्खाली में थे | और कोंग्रेस के बड़े नेता गाँधी जी को बुलाने के लिए गए थे कि बापू चलिए आप | गाँधी जी ने मना कर दिया था | क्यों ? गाँधी जी कहते थे कि मै मानता नहीं कि कोई आजादी आ रही है | और गाँधी जी ने स्पस्ट कह दिया था कि ये आजादी नहीं आ रही है सत्ता के हस्तांतरण का समझौता हो रहा है | आजादी नहीं आ रही है | और गाँधी जी ने नोआखाली से प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी | उस प्रेस स्टेटमेंट के पहले ही वाक्य में गाँधी जी ने ये कहा कि मै हिन्दुस्तान के उन करोडो लोगों को ये सन्देश देना चाहता हु कि ये जो तथाकथित आजादी (So Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं लाया | ये सत्ता के लालची लोग सत्ता के हस्तांतरण के चक्कर में फंस कर लाये है | मै मानता नहीं कि इस देश में कोई आजादी आई है | और 14 अगस्त 1947 कि रात को गाँधी जी दिल्ली में नहीं थे नोआखाली में थे | माने भारत की राजनीति का सबसे बड़ा पौधा जिसने हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई की नीव रखी हो वो आदमी 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में मौजूद नहीं था | क्यों ? इसका अर्थ है कि गाँधी जी इससे सहमत नहीं थे | और 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुवा है वो आजादी नहीं आई .... ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट का साइन हुवा था पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में | ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट और इनडिपेंडेंस ये दो अलग चीजे है | स्वतंत्रता और सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग चीजे है | और सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है ? आज आप देखिये एक पार्टी की सरकार है, वो चली जाये| दूसरी पार्टी की सरकार आती है | तो दूसरी पार्टी का प्रधानमन्त्री जब शपथ ग्रहण करता है , तो वो शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद एक कॉपी (प्रतिलिपि) पर हस्ताक्षर करता है, शायद आपने देखा होगा | तो जिस कॉपी पर आने वाला प्रधानमन्त्री हस्ताक्षर करता है, उसी कॉपी को ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर की बुक कहते है | और उस पर हस्ताक्षर के बाद पुराना प्रधानमन्त्री नए प्रधानमन्त्री को सत्ता सौंप देता है | और वो निकल कर बाहर चला जाता है | यही नाटक हुवा था 14 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे | लोर्ड माउन्ट बेटन ने अपनी सत्ता पंडित नेहरु के हाथ में सौंपी थी , और हमने कह दिया कि स्वराज्य आ गया! कैसा स्वराज्य और कहे का स्वराज्य ? अंग्रेजो के लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? और हमारे लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? अंग्रेज कहते थे की हमने स्वराज्य दिया| माने अंग्रेजों ने अपना राज तुमको सौंप दिया| ये अंग्रेजो का interpretation (व्याख्या/अर्थ) था | और हिन्दुस्तानी लोगों का interpretation था कि हमने स्वराज्य ले लिया | अंग्रेजों ने अपना राज तुमको सौंपा था ताकि तुम लोग कुछ दिन इसे चला लो जब जरुरत पड़ेगी तो हम दुबारा आ जायेंगे| अब वो दौबारा आने वाले है .......... बात को गंभीरता से समझो .............
अंग्रेजों का ही बनाया क़ानून, उन्ही की शिक्षा पद्धति, उन्ही का बनाया स्वास्थ्य पद्धति, उन्ही की न्याय व्यवस्था, यहाँ तक की उन्ही की भाषा, सब कुछ वही है. अपना कुछ भी नहीं. हम तो बस उन्ही का राज चला रहें हैं. दुःख की बात ये है की ये सारी बातें लोगों से गुप्त रखी गयी थी. जनता को सच्चाई बताई ही नहीं गयी और ना ही इसे छात्रों के पाठ्यक्रम में डाला गया. क्यूंकि सरकार ये नहीं चाहती कि जनता को सारी बातें मालूम चलें. अब बात ये है कि अँगरेज़ यहाँ भारत को लूटने आये थे, हमारा उद्धार करने तो कतई नहीं. इसीलिए उन्होंने जो नीतियाँ बने वो शोषण के लिए थी. हमारी सरकारें वही नीतियाँ चला रही हैं. यही कारण है कि आज तक जनता का भला नहीं हो सका. शक्तिशाली लोग क़ानून से नहीं डरते. आम आदमी कानून से पीड़ित है. इतनी योजनायें लागू होने के बाद भी किसी का कुछ भी कल्याण नहीं हुआ. सिर्फ अफसरों और नेताओ का ही भला हुआ. इसीलिए अब हमें पूरा सिस्टम ही बदलना होगा जो वास्तव में जनहितकरी हो.


रामदॆव बाबा क्या गलत कह रहॆ हे /यह समझ सॆ परॆ हे कि राज नॆता मुद्दॊ पर कारवाइ नही कर बाबा कॊ क्यॊ आरॊपित कर रहॆ हे |जब भारतिय लॊकतन्त्र मॆ व्यवस्था हे कि कॊई भी भारतिय नागरिक राजनिति मॆ आ सकता हे तॊ बाबा क्यॊ नही ऒर भारत का तॊ इतिहास रहा हे कि जॊ राजा धारमिक प्रवर्ति का रहा हे वह लॊकप्रिय भी रहा हे ऒर प्रजा भी कुशहाल रही हे साथ ही राजा जब कभी दुबिधा मॆ रहता था तॊ आश्रम मॆ महात्माऒ कॆ पास जा कर उनसॆ मन्त्रणा कर समाधान प्राप्त करता था |बाबा कॆ पास कालाधन हे या नही ,लॆकिन यह तॊ सचहे ही कि यह काला धन कमसॆकम भारत मॆ हे तथा भारत की जनता कॆ काम आ रहा हॆ |ऒर बाबा कॆ पास काला धन आया भी हे तॊ दान मॆ ,यदि सभी लॊग काला धन का उपयॊग जन सॆवा कार्य मॆ लगायॆ तॊ इससॆ अछा कार्य क्या हॊ सकता हे |लॆकिन यदि राजनॆतिक पार्टियॊ कॊ दॆतॆ हे तॊ इससॆ बडा पाप कॊइ नही हॊ सकता | कॊन नही जानता की राजनॆताऒ मॆ कितनी नॆतिकता रही हे सब जनता जानती हे लॆकिन सगठित नही हॊनॆ सॆ बॊल नही पाती हे नॆताऒ कॊ चाहियॆ कि बाबा पर हमला बॊलनॆ कॆ बजाय बाबा की बातॊ पर गॊर करॆ यदि करनॆ लायक हे तॊ ऒर नही हे तॊ बाबा जॊ बॊल रहॆ हे बॊलतॆ रहॆ ,यदि बाबा कि बातॊ पर ध्यान दॆ रहॆ हॆ तॊ यह तॊ सत्य हे कि बाबा नॆ सही व राजनॆताऒ की नस पकड ली हे जीससॆ लॊग तिलमिला रऎ हे |हम तॊ बाबा कि बातॊ पर ही अब गॊर करनॆ लगॆ हे

RAMAAVATARA GUPTA (JAIPUR, INDIA)

u.k.हमारे भारत पर करीब 200 सालो तक राजकरके करीब 1 लाखकरोड़ रुपये लूटा. मगर आजादी के केवल 64 सालों में हमारे भ्रस्टाचार ने280लाख करोड़ लूटा है. एक तरफ 200 साल में 1 लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64सालों में 280 लाख करोड़ है. यानि हर साल लगभग 4.37 लाख करोड़, या हर महीनेकरीब 36 हजार करोड़ भारतीय मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट लोगों द्वारा जमाकरवाई गई है. भारत को किसी वर्ल्ड बैंक के लोन की कोई दरकार नहीं है. सोचो कीकितना पैसा हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और उच्च अधिकारीयों ने ब्लाक करके रखा हुआहै. हमे भ्रस्ट राजनेताओं और भ्रष्ट अधिकारीयों के खिलाफ जाने का पूर्ण अधिकारहै.हाल ही में हुवे घोटालों का आप सभी को पता ही है - CWG घोटाला, २ जीस्पेक्ट्रुम घोटाला , आदर्श होउसिंग घोटाला ... और ना जाने कौन कौन से घोटालेअभी उजागर होने वाले है ........आप लोग जोक्स फॉरवर्ड करते ही हो. इसे भी इतनाफॉरवर्ड करो की पूरा भारत इसे पढ़े ... और एक आन्दोलन बन जाये ...सदियोकी ठण्डी बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज् पहन इठलातीहै।दो राह,समयके रथ का घर्घर नाद सुनो,सिहासन खाली करो की जनता आती


भ्रष्‍टाचार और काला धन के खिलाफ लड़ाई मोल लेने वाले बाबा रामदेव पर राजनेताओं के हमले जारी हैं। क्या बाबा का यह आरोप सही है कि कि भ्रष्टाचार के लिए राजनेता जिम्मेदार हैं? आखिर राजनेता इस तरह बाबा के पीछे क्‍यों पड़े हैं? क्या बाबा भी धर्म और राजनीति का घालमेल नहीं कर रहे हैं? क्या कांग्रेस का यह आरोप कि बाबा सस्ती राजनीति कर रहे हैं ठीक है? क्‍या योग गुरू की संपत्ति की भी सीबीआई जांच होनी चाहिए?

एक लड़का साइकिल पर बडी तेज़ी से जा रहा था कि एक बूढे़ से टक्‍कर हो गयी, दोनो गिर पडे़। बूढा फोरन उठा और लड़के को एक रुपये देते हुए कहा, "लो बेटा! अंधो को भीख देना बडे़ पुण्य का काम है।



मुन्नालाल बिना हेलमेट के स्कूटर से जा रहा था। उसे दरोगा ने रोका और चालान काटने लगा।

मुन्नालाल बोला- सर, मैं तो पान की दुकान पर जा रहा हूं।

दरोगा- अरे, मैं भी वहीं जा रहा हूं। चल...चालान काट दूं...फिर दोनों साथ चलते हैं। वैसे तुम काम क्या करते हो?

मुन्नालाल- जी, मेरी पान की दुकान है
कभी भी कामयाबी को दिमाग में और नाकामी को दिल में जगह नहीं देना चाहिए क्योंकि... कामयाबी दिमाग में गुरूर और नाकामी दिल में मायूसी पैदा कर देती है


जब पेपर हो आउट ऑफ कंट्रोल आनसर शीट को करके फोल्ड एरोप्लेन बना के बोल आल इज फेल

Thursday, March 3, 2011

भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा" ये कहना है स्विस बैंक के

डाइरेक्टर का. स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग 280

लाख करोड़ रुपये (280 ,00 ,000 ,000 ,000) उनके स्विस बैंक में जमा है. ये रकम

इतनी है कि भारत का आने वाले 30 सालों का बजट बिना टैक्स के बनाया जा सकता है.

या यूँ कहें कि 60 करोड़ रोजगार के अवसर दिए जा सकते है. या यूँ भी कह सकते है

कि भारत के किसी भी गाँव से दिल्ली तक 4 लेन रोड बनाया जा सकता है. ऐसा भी कह

सकते है कि 500 से ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण किये जा सकते है. ये रकम

इतनी ज्यादा है कि अगर हर भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए जाये तो 60

साल तक ख़त्म ना हो. यानी भारत को किसी वर्ल्ड बैंक से लोन लेने कि कोई जरुरत

नहीं है. जरा सोचिये ... हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और नोकरशाहों ने कैसे देश को

लूटा है और ये लूट का सिलसिला अभी तक 2011 तक जारी है. इस सिलसिले को अब रोकना

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